वरिष्ठ पत्रकार रवीश कुमार ने एक बार फिर उस बहस को हवा दी है, जो भारत में पत्रकारिता की स्वतंत्रता, कॉरपोरेट पावर और सरकारी दखल के इर्द-गिर्द घूमती है। इस बार मामला सीधे अदानी ग्रुप से जुड़ा है। रवीश कुमार ने केंद्र सरकार द्वारा उनके यूट्यूब चैनल से अदानी समूह से संबंधित एक वीडियो हटाने के आदेश को दिल्ली हाईकोर्ट में चुनौती दी है।
क्या है मामला?
पूरा विवाद तब शुरू हुआ जब 6 सितंबर 2025 को दिल्ली की रोहिणी कोर्ट ने एक आदेश में कई पत्रकारों और यूट्यूब चैनलों को अदानी ग्रुप के खिलाफ “अपमानजनक सामग्री” प्रकाशित या प्रसारित करने से रोक दिया। यह आदेश अदानी एंटरप्राइजेज लिमिटेड द्वारा दायर मानहानि के मुकदमे के तहत आया था।
इसके बाद 16 सितंबर को केंद्र सरकार ने रवीश कुमार, अन्य स्वतंत्र यूट्यूबर्स और समाचार प्लेटफार्मों को आदेश जारी करते हुए कहा कि वे इस अदालती आदेश के अनुपालन में “उचित कार्रवाई” करें — यानी ऐसी सभी सामग्री को हटाएं जो अदानी समूह की छवि को नुकसान पहुंचा सकती है।
रवीश कुमार ने क्यों दी हाईकोर्ट में चुनौती?
रवीश कुमार ने सरकार के इस आदेश को पत्रकारिता की आज़ादी पर हमला बताया है। उनका कहना है कि इस तरह के मुकदमे और सरकारी हस्तक्षेप का उद्देश्य पत्रकारों को डराना और चुप कराना है। उन्होंने सीधे तौर पर यह सवाल उठाया है कि क्या अब कॉरपोरेट आलोचना भी अपराध बन गई है?
उनका तर्क है कि रिपोर्टिंग और विश्लेषण करना पत्रकार का काम है, और किसी कॉरपोरेट समूह पर सवाल उठाना कोई “मानहानि” नहीं, बल्कि लोकतांत्रिक प्रक्रिया का हिस्सा है।
18 सितंबर का आदेश और आंशिक राहत
गौरतलब है कि 18 सितंबर को एक अपीलीय अदालत ने इस मामले में चार पत्रकारों को आंशिक राहत देते हुए निचली अदालत का आदेश आंशिक रूप से रद्द कर दिया था। इससे यह उम्मीद जगी है कि हाईकोर्ट में भी रवीश कुमार को कानूनी सहारा मिल सकता है।
बड़ा सवाल: क्या यह सेंसरशिप है?
रवीश कुमार के हाईकोर्ट जाने से यह बहस फिर ज़ोर पकड़ रही है कि क्या भारत में अब स्वतंत्र पत्रकारिता की गुंजाइश सिमटती जा रही है? क्या सरकार कॉरपोरेट हितों की रक्षा के लिए मीडिया पर लगाम कस रही है?
इस मुद्दे पर पत्रकारों और मीडिया संगठनों के बीच दो राय नहीं कि सरकार और बड़े बिज़नेस समूहों की आलोचना अब मुश्किल होती जा रही है। यूट्यूब और डिजिटल प्लेटफॉर्म, जो अब तक मुख्यधारा मीडिया के मुकाबले कहीं ज्यादा स्वतंत्र माने जाते थे, वे भी अब निगरानी के दायरे में आ चुके हैं।